Saturday, September 14, 2019

एक लेखक. . .



अखबार के पन्ने पलटता लेखक
उन कृतियों को फिर मन में दोहराता है
मुखौटे ओढ़े उन चेहरों को
फिर अपनी निगाहों  से तौलता जाता है।
क्यों गमगीन-सी है ये दुनिया
इस विचित्र मायाजाल में
यह सोचता लेखक
फिर सोच में पड़ जाता है
इंसानियत बिखरती सवरती
वह अपनी उँगलियों पर गिनता जाता है
सूरज के तेज़ सा उसका मुख
हवा के तेज झोकों से यूँ मुरझा जाता है
भीतर उठी आग
वह नदियों में बहाता जाता है
रूककर वह फिर से इस दुनिया
इसके बन्दों को समझना चाहता है
किन्तु इन अमिट लिखें अक्षरों में
उसे एक छल-सा नज़र आता है
उत्तर की खोज में निकला
वह अब  प्रश्नों से भी घबराता है
टूटी हिम्मत जोड़कर लेखक
फिर स्वयं से मिलना चाहता है
भूल गया था खुद को जहाँ
वहीँ से फिर यात्रा आरम्भ करना चाहता है
दोहरे चेहरों, दोहरी बातों से उन्मुक्त हो
लेखक अब फिर से लिखना चाहता है। 


© भावना राठौड़

( टीम दैनिक भास्कर की ओर से  हिंदी दिवस के अवसर पर आयोज्य कार्यक्रम "शब्द भास्कर" ( हिन्दी कवियों - शायरों के लिए खुला मंच) में ज्यूरी की ओर से चयनित मेरी यह कविता)

No comments:

Post a Comment

Published in The Wise Owl daily verse , October theme -Thresholds

  The Quiet Before Beneath hush of thoughts, silence of an eclipsed mind paces- Like those medieval paintings serene, still, lost ...